आदतों से कैसे छुटकारा पाऊँ?
कोई खाली जगह होती है, उसी खाली जगह में आदतें आकर बैठ जाती हैं ।
हमने जीवन में एक रिक्तता खड़ी कर
रखी होती है, जिसको आदतें आकर
भर देती हैं।
आदतों की बार-बार बात करना भी
उस रिक्तता को समर्थन देना ही है
हम यह नहीं चर्चा कर रहे
कि जिंदगी क्यों खाली है, केंद्रहीन है,
लक्ष्यहीन है? जीवन में ये रिक्तता है क्यों?
हम तो बस इतना ही कह रहे हैं कि
आदतें क्यों लग गई हैं?
आदतें किसको लग गई हैं,
इसकी बात नहीं करना चाहोगे?
आदतें उसको लग गई हैं जिसके पास
आदतों से बेहतर कुछ है नहीं।
एक खालीपन है।
और तुमने उस खालीपन को
बरकरार रखते हुए आदतों को
किसी तरकीब से हटा भी दिया
तो तुमने कौन-सा तीर मार लिया?
जीवन का जो सूनापन है, खोखलापन है
वो कायम रहेगा।
बार-बार आदत का ही ख़्याल कर रहे हो,
इससे बस इतना हो पाएगा कि
तुम एक आदत छोड़ कर
दूसरी आदत की ओर चले जाओगे।
जीवन को देखो
वहाँ आदतें हीं आदतें दिखाई देंगी
समझो! जीवन में कोई केंद्रीय प्रेम नहीं है,
जीवन में कुछ ऐसा नहीं है
जो जीवन को पूरे तरीके से सोख ले,
जो तुम्हारे पूरे जीवन की ही कीमत माँग ले,
कुर्बानी माँग ले।
तभी तो आदतें छुपी और बची रह जा रही हैं।
जब एक बार पता चल गया
कि जीवन की ये हालत है
उसके बाद जीवन में सार्थकता का उद्यम करो
फिर वो काम करो जो तुम्हें करना ही चाहिए
फिर वो काम पता भी नहीं चलेगा और
तुम्हारी आदतों को तोड़ डालेगा।
मैंने कहा तुम्हें पता भी नहीं चलेगा और
तुम्हारी आदतें छूट जाएँगी,
यह सही तरीका है कि
हमें पता भी नहीं चला आदत कब छूट गयी।
आचार्य प्रशांत
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