[नारी शिक्षा अति आवश्यक] [8/2019]



नारी शिक्षा अति आवश्यक पर आधरित ये एक लेख भारत के बहुत से क्षेत्रों के हालातो को दर्शाता हुआ इस लेख को अवश्य पूरा पढ़े ये लेख आप sourabh44.blogspot.com पर पढ़ रहे है ।

एक गांव के छोटे से घर के आंगन में से एक माँ अपनी पुत्री जिसकी उम्र मात्र 10 वर्ष है । उसको आवाज देती है माया चलो जल्दी से उठ जाओ अभी सब काम बाकि है  चलो जल्दी और एक मासूम सी  मुस्कान के साथ एक छोटी सी लड़की दरवाजे के पीछे से मुँह निकालकर देखती है और उसकी माँ उसके छोटे भाई किशन  को स्कूल के लिए तैयार कर  रही होती है । और उसके पिता वही आंगन में बैठकर अख़बार पढ़ रहे है  अपने भाई को स्कूल के लिए जाते हुए देखती है  और दबे पांव अपने पिता की और धीरे धीरे बढ़ती है और कहती है  बापू मुझे भी भैया के साथ स्कूल जाना है इतना सुनकर उसके पिता अख़बार से अपनी निगाह उठाते हुए कहते है  तू स्कूल जा कर  क्या करेगी छोरी इतना सुनकर माया बहुत ही सहमे हुए कहती है  भैया की तरह स्कूल जाकर पढ़ना है  उसके पिता अख़बार एक तरफ रखते हुए और एक करवट सी  लेकर बैठ  जाते है और वहां पर रखी चाय से घूंट भरते हुए  माया की तरफ देखते हुए कहते फिर से कहते है तू पढ़ाई लिखाई  कर के क्या करेगी छोरी और अख़बार वापिस अपने तरफ लेते हुए कहते है  किशन तो पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बनेगा तू तेरे कामो में मन लगा तेरी माँ ने बताया नहीं इतना सुनते ही माया कहती है  की बापू घर का काम तो माँ मुझे सीखा इतना कहने लगी ही थी की पिता की कड़कती आवाज कानो में पड़ती है  तेरी माँ से पूछ वो कभी गई है  स्कूल पढ़ने के लिए और , माया मुड़कर  अपनी माँ को देखती है  जो घर के कामो को कर  रही होती है ।उसके पिता चाय को खत्म करते हुए कप एक तरफ रखकर कहते है  की बेटी तुझे पढ़ाई लिखाई कर के कोण सा हिसाब - किताब करना है  घर के काम में मन लगा आगे जाकर ससुराल में यही सब करना है  और हां जिस गली जाना नहीं उस गली का पता क्यों पूछती है ।इतना सुनकर माया अपने सपनो को मन में दबा कर  वही सोचती हुई खड़ी हो जाती है  तब तक उसका भैया स्कूल को जा चूका होता है  और माया भी घर के कामो में लग जाती है ।
 समय का चक्र बड़ी तेजी से घूमता है  और इस प्रकार 10 वर्ष बीत जाते है  तब तक माया और उसके भाई दोनों जवान हो जाते है ।

10 वर्ष बाद. ......... 
उसका भाई किशन  बाइक पर आता  है  और अपनी माँ से कहता सुनो माँ मै दोस्तों के साथ फिल्म देखने जा रहा हु बापू को मत बताना मुझे आने में देर हो जाएगी उसकी माँ उसकी बात में हामी भर देती है और किशन तैयार होने के लिए अंदर चला जाता है ।  और माया भाई के बाइक को देखकर ख़ुशी ख़ुशी उसकी तरफ बढ़ती है  और उसके ऊपर बैठकर सीसे में देखती हुई हलकी सी  मुस्कान के साथ खुश हो जाती है  तभी किशन भी अंदर से बाहर आ जाता है  उसकी माँ उसे देखते हुए कहती है  किशन सुन तो तेरे बापू वो माया के रिश्ते के बारे में कुछ बोल रहे थे क्या हुआ उसका इतना सुनकर किशन कहता है  अरे हां वो तो आपको कहना ही भूल गया बापू बता रहे थे माया को देखने के लिए कल  लड़के वाले आ रहे है  इतने में पीछे से माया की आवाज सुनाई देती है भैया मुझे बाइक चलाना सिखाओगे मुझे भी सीखना है  इतना सुनकर किशन भी अपनी माँ को हामी भरवाते हुए कहता है  देखा माँ इसका फिर से शुरू हो गया कभी कहती है  ये सीखना हे वो सीखना है  ये करना है  वो करना है  अब आज बोल रही की मुझे बाइक चलाना सिखाओ इतना कहकर किशन माया को सुनाते हुए कहता है  सुन अपना ध्यान अपने घर के कामो में रख वो सब सीखना जरुरी है  तुझे ये सब नहीं इन सब  कामो के लिए हम बैठे है  इधर और हां ससुराल में भी होंगे न घर चलाने के लिए मेरे होने वाले जीजा जी और  इतना कहकर वो हंसने लगता है  और माया भी शर्मा जाती है और फिर सब अपने कामो में व्यस्त हो जाते है
और अगली सुबह निकल आती है  पेड़ो पर पक्षियों की चह चाहट शुरू हो जाती है  माया भी आज बहुत खुश है  उसे भी आज लड़के वाले देखने आ रहे होते है  इस वजह से वो सुबह ही तैयार हो जाती है ।
कुछ ही देर उनके घर के सामने एक गाड़ी आकर रूकती है  और तीन चार लोग उनको हाथ जोड़कर घर में प्रवेश करते हुए दीखते है  माया के पिता भी उनको आदर के साथ अभिवादन स्वीकार करते हुए अंदर लाते  है  और उनको बैठने के लिए कहते है  चाय पानी पिलाने के बाद हंसी ठिटोली करते हुए वो अपनी माया का रिश्ता मुकेश नाम के एक लड़के के साथ  पक्का कर देते है जो शहर में एक कॉस्मेटिक की दुकान चलाता  है ।   और कुछ महीने के बाद माया की शादी हो जाती है और इस प्रकार समय का चक्र एक बार फिर तेजी से घूमता है ।
उसकी शादी के बाद 2 बच्चे हो जाते है  माया अब अपने लड़के को सुबह स्कूल के लिए तैयार कर रही होती है की उसे कमरे के गेट पर किसी के होने की आवाज सुनाई देती है माया जोर से आवाज लगाती है  रौशनी तभी एक हल्की मुस्कान के साथ एक छोटी लड़की अंदर प्रवेश करती है  रौशनी माया की लड़की है  माया तेज आवाज में रौशनी से कहती है  की जाओ भैया का टिफिन लेकर आओ और रौशनी टिफिन लाने जाती है  और वापिस आकर अपनी माँ से कहती है की माँ मुझे भी स्कूल जाना है  इतना सुनते ही रौशनी उसे डांटते हुए कहती है  की क्या करोगी स्कूल जाकर मै गई हु कभी स्कूल तुझे मुझसे घर के काम सिखने है  बताया तो है  तुम्हे कितनी बार
इतने में माया के पति कमरे में प्रवेश करते हुए अपने बेटे से कहते है लालू जल्दी से स्कूल के लिए तैयार हो जाओ मै लेट हो रहा हु और लालू जल्दी जल्दी तैयार होने लगता जब  है  और तैयार होकर अपने पिता के साथ स्कूल के लिए निकल जाता है और रौशनी भी अपनी माँ के साथ घर के कामो में लग जाती है  कुछ ही देर बाद फ़ोन बजने की आवाज सुनाई देती है  और माया फ़ोन उठाती है  सामने से आवाज आती हे की मै सिटी हॉस्पिटल से बोल रहा हु और मुकेश का एक्सीडेंट हो गया है  ओर वो अब नहीं रहे इतना सुनकर माया के हाथ से  फ़ोन गिर जाता है और माया बेहोंश हो जाती है  उसी समय मुकेश के पिता आते है  और फ़ोन को कान से लगाकर हेलो बोलते है  और उन्हें भी सामने से यही वाक्यांश सुनाई देता है और वे भी निढाल से होकर रोते हुये जमीं पर गिर पड़ते है ।
कुछ दिन बाद उनका परिवार शाम के समय बैठा होता है  तो माया का देवर आता है  और अपने पिता से कहता है  की बाबू जी वो मुकेश की दुकान की चाबी आ गई कोई सम्लभाने वाला तो रहा नहीं वैसे भी मुझे नौकरी से फुरसत मिलती नहीं तो दुकान बंद करवा दी है । इतना सुनकर उसके पिता कहते है  ठीक है  बेटा  तुझे जैसा सही लगे वो कर  ले इतने में माया के देवर ने फिर से बोलना शुरू किया की अब मुकेश तो रहा नहीं अब मेरी इतनी कमाई है  नहीं की में सबको संभाल  सकू आप माया को उसके मायके क्यों नहीं भेज देते ये सब मेरी जिम्मेदारी नहीं है ।
और इस प्रकार मुकेश के पिता भी माया से कहते है  की बेटे इस उम्र में मै  कैसे किसी की जिमेवारी संभाल पाउगा मेरी लाचारी और मज़बूरी को समझो मुझे माफ़ कर  दो बेटे मुझे माफ़ कर  दो और माया अपने दोनों बच्चो को लेकर पिता के घर पहुँचती है  और उसके पिता पहले से ही नम आँखों लिए दुःख के साथ बैठे है और माया को देखते ही उसे गले लगाकर रोने लगते है इसी दरमियान माया का भाई आता है  और अपने पिता से कहता है  की माया को यहाँ भेजने का क्या मतलब है  माया को सम्भलना उन लोगो की जिमेवारी है
उसके पिता कहते है  उन लोगो ने नहीं संभाला इसी लिए तो भेजा है ।  तो किसन कहता है  की इसका मतलब जिंदगी भर अब हम संभाले मै  नहीं कर  सकता ।
इतना सुनकर माया बड़े ही दुखी दिल से कहती हे बापू आज ना मुझे किसी की बहुत याद आ रही है  आज मुझे वो 10 साल की माया याद आ रही है  वो छोटी सी मासूम सी माया जो अपने बापू पर आश्रित थी जिसके दिल में पढ़ने का सपना था जो स्कूल जाना चाहती थी अपने भाई की तरह वो भी पढ़ना चाहती थी आगे बढ़ना चाहती थी अपने पेरो पर खड़ा होना चाहती थी वो माया जिसको आपने मार डाला उसके सपने उसकी जिघ्यासा को छीनकर क्योंकि आपके हिसाब से पढ़ाई करने का हक़ सपने देखने का हक़ सिर्फ छोरो को ही होता है ना मै फिर भी खुश थी जिन्दा थी मै अपनी माँ की तरह उन हजारो ओरतो की तरह अपने बच्चो और अपने पति के लिए बहुत सारे बलिदान देती थी इस और इस विश्वाश के साथ जीती थी की मेरी रक्षा करने के लिए मेरा घर चलाने के लिए मेरा पति है ना, कहां है मेरा पति , मेरा पति तो नहीं हे बापू और रोने लगती है और रोते रोते अपने पिता से कहती है बाबू चलो ना  एक बार और कोशिश करते है  मुझे भी पढ़ना है  मुझे स्कूल जाना है  उसके पिता के मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल पाता है ।
 की माया एक बार फिर बोलती है  क्या हुआ बापू दो  न वही जवाब की तुझे कोण सा हिसाब देखना है
मेरे पति की दुकान बंद हो गए बापू क्योंकि हिसाब देखने वाला तो कोई रहा नहीं और अपने भाई की तरफ बढ़ते हुए कहती है  किशन मुझे बाइक चलाना सिखाओगे मुझे भी तुम्हारी वो  किताब पढ़नी है  मुझे गिनती सिखाओ  ना क्या हुआ किशन तुम भी बोलो न की मुझे तो ससुराल जाना है  और वहां तो तुम्हारे जीजा जी होंगे सब कुछ संभालने के लिए किशन तुम्हारे जीजा जी अब नहीं रहे
आज अगर मै पढ़ी लिखी होती कुछ सीखी होती तो मेरे पति की दुकान ऐसे बंद ना  होने देती कुछ भी छोटा मोटा काम कर लेती लेकिन इस तरह मुझे और अपने बच्चो के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाने पड़ते किसी पर बोझ नहीं बनती मै  बापू आपने तो मेरी हर इच्छा पूरी की थी तो फिर मेरी पढ़ने की इच्छा को पूरा क्यों नहीं किया क्यों आपको  छोरियो को पढ़ना जरुरी नहीं लगता क्यों हमको हमेशा यही सिखाया जाता है  की पढ़ना लिखना कमाना घर चलाना ये सब सिर्फ मर्दो का ही काम है  हमेशा औरतो को हमेशा मर्दो पर निर्भर बनाया जाता है  क्यों हमे आत्म निर्भर नहीं बनाते अपने पिता को देखते हुए गुस्से और दुःख के साथ माया कहती है
शिक्षा पाना हर इन्शान का जन्म सिद्ध अधिकार है  आप कोण होते हो  उसे छीनने वाले  
और इस प्रकार माया के पिता सोचते  है  की आज मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया एक पिता होने के नाते मेरा परायश्चित तब तक पूरा नहीं जब तक समाज में समानता का अधिकार पूरा न हो उसमे लड़का और लड़की में भेद केसा आज मुझे लगता है  वो कन्यदान अपने आप में पूरा नहीं जब तक हम अपनी बेटियों को शिक्षित ना करे और उसे आत्म निर्भर न बनाये मेरी हर पिता से विनती है की वो अपनी बेटियों से शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार ना छीने
माया की जिंदगी में दूर दूर तक अँधेरा था कोई राह कोई रास्ता नहीं दिख रहा था लेकिन माया ने उम्मीद नहीं छोड़ी अब माया अपनी बेटी को पढ़ा रही है  और उसे विश्वास है  की उसके और उसकी बेटी के अंधकार भरे जीवन में रौशनी जरूर आएगी
किसी भी बेटी से उसका शिक्षा का हक़ ना छीने अपनी बेटी को शिक्षित बनाये
बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ
धन्यवाद
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Comments

  1. Nice....hakikat me hi bhut khubsurat story h
    Beti bachao-beti pedhao

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  2. Beti bacho-beti pedhao
    Desh ko ek nyi rah dikhao
    Nice story 👍

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  3. Hr ldki ka janam sidh aadhikar h education

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